अब रुक जाएं?

Anurag Verma
May 24, 2021

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सबकुछ जैसे चल रहा है,
कितना कुछ बोल रहा है,
मैं, तुम, क्या ऐसे ही थे?
सब हमेशासे ऐसा ही था?
विचारधारा, सपने, सनक और स्वार्थ में खोया हुआ।
आज एक सार्थक शब्द नहीं लिखा जा रहा।
फिरभी बेईमानी से पन्ने भरे जा रहे है।
बंद कमरों में सिखने-सीखने की ये पढाई,
इस दौर का झूट नहीं तो क्या है?

जिन रास्तो पे चल, हमें मुश्किल सवालों का हल होना था,
उन रास्तो का, उन सवालों से कोई रिश्ता है ही नहीं।
ये रस्ते कोरा दिखावा है, औपचारिकता है।
इन पर चलने के नाम पर चला जा रहा है।
ये इस वक़्त में अश्लीलता नहीं?
जो भी, जैसा भी चल रहा है,
बेहतर होता रुक जाना, कहीं इस्थिर बैठ जाना,
और हाथ बटाना, इस वक़्त को देखना, उससे सीखना, उसे याद रखना।

25–05–21
मंगलवार
घर

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Anurag Verma

Policy student interested in Politics!